भगवान सर्वशक्तिमान हैं। वह सर्वव्यापी हैं। वह सर्वज्ञ हैं। वह गणित जानते हैं। हम गणित को विज्ञान की भाषा कहते हैं। इसलिए, जो लोग भगवान में विश्वास करते हैं, वे कहते हैं कि उन्होंने विज्ञान और गणित के सभी नियमों को लागू करके ब्रह्मांड का निर्माण किया है।

भगवान पिछले 5 अरब वर्षों से अधिक समय से खगोलीय पिंडों की गति को खूबसूरती से, आश्चर्यजनक रूप से, और लगातार नियंत्रित कर रहे हैं।

हम दो उदाहरण इस विश्वास को सही साबित करने के लिए लिख रहे हैं कि भगवान के पास गणितीय अंतर्दृष्टि है।

सर आइजैक न्यूटन ने 1687 में विज्ञान की अपनी पाठ्यपुस्तक प्रकाशित की। उन्होंने इस पुस्तक का शीर्षक रखा : प्रिंसिपिया, प्राकृतिक दर्शन के गणितीय सिद्धांत (Principia, the Mathematical Principles of Natural Philosophy)

गैलीलियो जो उस समय का खगोल शास्त्र का महान वैज्ञानिक था, उसने इस पर टिप्पणी लिखी : प्रकृति की पुस्तक गणित की भाषा में लिखी गई है।

20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली गणितज्ञों में से एक, आंद्रे वेल (Andre Weil) ने एक बार कहा था : भगवान मौजूद है क्योंकि गणित सुसंगत (consistent) है, अर्थात् गणित की सुसंगतता भगवान के अस्तित्व का प्रमाण है।

17वीं सदी के वैज्ञानिक जोहान्स केपलर का मानना था कि ईश्वर एक ज्यामितिज्ञ (God is a geometer) है।

केपलर कहते हैं कि गणित की सुंदरता आकाश में ग्रहों के व्यवस्थित होने के तरीके में दिखाई देती है। ब्रह्मांड के लिए भगवान ने जो संप्रभु (sovereign) नियम बनाए हैं, उनके माध्यम से ग्रहों का संचालन ब्रह्मांड की संरचना करने के बाद भी पूरी तरह से काम कर रहा है।

भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने कहा है : मेरे लिए एक समीकरण का कोई मतलब नहीं है जब तक कि वह ईश्वर के विचार का प्रतिनिधित्व न करे।

यह कथन बताता है कि उन्हें ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास था।

ब्रह्माण्ड के ग्रहों, पिंडों आदि के लगातार सही तरीके से चलने को देखकर कोई भी स्पष्ट रूप से कह सकता है कि ईश्वर ब्रह्मांड की संरचना में गणित का उपयोग करता है। हम भी चाहें तो ईश्वर की इस भाषा को सीख सकते हैं और ईश्वर के बराबर हो सकते हैं, बशर्ते हम अधीर न हों यानि अपना धैर्य न खोएं। सीखने में समय तो लगेगा ही!

ईश्वर की अंतर्दृष्टि पाखंड (Hypocrisy) को पसंद नहीं करती है। ईश्वर की अंतर्दृष्टि जरूरी सिद्धांतों को समझती है।

अगर कोई गणित की भाषा या प्रकृति की भाषा जानता है, तो वह ईश्वर की योजना की बड़ी तस्वीर को समझ सकता है।

ईश्वर की अंतर्दृष्टि दो बातें बताती है:

(1) हर समस्या का समाधान होता है, और

(2) अगर कोई पैटर्न है, तो वहां गणित है।

अब यह स्पष्ट है कि हमारे आस-पास की हर चीज़ गणित है, ठीक वैसे ही जैसे हमारे आसपास भगवान हैं। जब हम भगवान से नहीं डरते हैं, तो हमें गणित से भी नहीं डरना चाहिए।

भगवान की रचना में हर जगह एक दिव्य अनुपात रहता है। यह हमारे आस-पास की प्रकृति में हर जगह दिखाई देता है।

हमने सीपियों में सर्पिल (Spiral) जरूर देखा होगा।

जैसे-जैसे सीपियाँ (shells) बड़ी होती जाती हैं, वे अपना समान आकार बनाए रखती हैं। इस सुंदर रूप को गोल्डन स्पाइरल नाम दिया गया है। इसे भँवरों, सूरजमुखी के फूलों, मधुमक्खियों, फूलों की पंखुड़ियों, हमारे चेहरे, हमारे हाथ और भुजाएं, हमारे डीएनए, और हमारी उंगलियों आदि में देखा जा सकता है।

हमें याद रखनी चाहिए, अगर कोई चीज़ प्राकृतिक है अर्थात् भगवान द्वारा बनाई गई है, तो वह दिव्य अनुपात (Divine Proportion) में एक पैटर्न का पालन करेगी। गणित में इस दिव्य अनुपात को स्वर्णिम अनुपात (Golden Ratio) भी कहा जाता है।

हम इस लेख के अंत तक आते-आते अब यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि सर्वशक्तिमान ईश्वर संरचनात्मक भाषा (Structural Language) का पालन करता है और अपनी गणितीय अंतर्दृष्टि (Mathematical Insight) में बहुत सचेत है।