गणित जीवन को व्यवस्थित बनाता है
एक बार की बात है। एक दिन मुझे कहीं जाना था। मैं एक रिक्शे वाले के पास गया। वह पढ़ा-लिखा नहीं लग रहा था। मैंने उससे लगभग एक किलोमीटर दूर जाने का भाड़ा पूछा।
उसने एक रकम बताई।
मैंने उससे दूसरी जगह जो करीब तीन किलोमीटर दूर थी, का भाड़ा पूछा तो भाड़ा बदल गया।
फिर मैंने उससे एक आधा किलोमीटर के फ्लाई ओवर के पार का भाड़ा पूछा।
उसने अबकी बार सबसे अधिक भाड़ा बताया।
हमने कहा, क्यों भाई, यह तो बहुत ज्यादा है। यह जगह तो बहुत नजदीक है।
उसने कहा, चढ़ाई है, मेहनत बेसी लगेगी।
मैं समझ गया कि वह रिक्शावाला भले ही हमारी नजर में पढ़ा लिखा न लगता हो पर उसे Height-distance-work आदि सब पता है। यही तो गणित है। यही तो रोजमर्रा की गणित है। इसी की तो जीवन में जरूरत है।
हमारा मानना है कि गणित का ज्ञान मनुष्य में जन्मजात होता है। मधुबनी इलाके की अनपढ़ महिलाएं जब भी कलाकृतियां बनाती हैं, तब वे जटिल और कठिन ज्यामितीय आकारों का बहुत सहज तरीके से प्रयोग करती हैं। इसे देखकर बहुत आश्चर्य होता है। सबसे बड़ा आश्चर्य तब होता है जब पता चलता है कि उनको कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली है और वे बिना अक्षर ज्ञान की हैं फिर भी जटिल डिजाइन बना रही होती हैं और वह भी बिना किसी उपकरण के।
दैनिक जीवन में गणित कदम कदम पर जरूरी है। गणित काम को हल्का कर देती है। सच्चाई यही है कि हम हर समय गणित का उपयोग करते हैं। बिस्तर से उठने से लेकर रात को सोने तक दैनिक जीवन में गणित का उपयोग होता रहता है। रसोई में खाना बनाना हो, खेत में जुताई अथवा बुवाई करनी हो, फसलों को पानी देना हो, हर जगह गणित इस्तेमाल में रहती है।
किसी काम को खूबसूरत तरीके से करने के लिए विशेष समझ की जरूरत होती है। यही विशेष समझ गणित है। बढ़ईगिरी हो या दुकानदारी, डॉक्टरी हो या इंजीनियरी, नाच-गाना हो अथवा जादूगरी, कलाकारी हो या सिलाई, हर जगह इस विशेष समझ की जरूरत रहती है।
समय का प्रबंधन करना हो, बजट बनाना हो, खेल खेलना हो, खाना पकाना हो, व्यायाम करना हो, ड्राइविंग करनी हो, घर की सजावट करनी हो, सिलाई करनी हो, बिना विशेष समझ कुछ भी संभव नहीं होता है। हमें जानना होता है कि हमारे पास विभिन्न कार्यों को पूरा करने के लिए क्या पर्याप्त समय है, 50 प्रतिशत की छूट लागू होने के बाद शर्ट की कीमत कितनी होगी, टैक्स जोड़ने के बाद कीमत क्या होगी? इन सबके लिए गणित का ज्ञान जरूरी है। प्रतिशतता किस प्रकार काम करती है, इसकी बुनियादी समझ जरूरी है।
हम अपनी दिनचर्या अपने हिसाब से तय करते हैं। हम तय करते हैं कि कितनी देर तक जिम में रहना है, कितनी देर तक स्विमिंग करनी है, अथवा कौन से व्यायाम कितने बार करने हैं। यह सब गणित की मदद से होता है।
गणित का सामान्य ज्ञान हर खेल के स्कोर पर नज़र रखने में मदद करता है। ज्यामिति (Geometry) और त्रिकोणमिति (Trigonometry) उन बच्चों की मदद करती है जो खेल में अपने कौशल को बेहतर बनाना चाहते हैं। यह गेंद को मारने, बास्केट में डालने, ट्रैक के चारों ओर दौड़ने, अथवा दूर तक डिस्कस थ्रो, भाला फेंक आदि में सहयोगी होता है।
कितने कोण पर फेंकने पर भाला कितना दूर जायेगा, यह गणित ही बताता है।
कल्पना करिए, खाना बनाते समय किसी रेसिपी में 3 बड़े चम्मच नमक की जरूरत है। हमारे पास केवल एक चम्मच है। हम कैसे नापेंगे? रेसीपी में 4 कप की जरूरत बताई गई, लेकिन हमारे पास केवल एक चौथाई कप वाला बर्तन है तब कैसे नापेंगे? हमें जानना होगा कि एक चौथाई, आधा, 3, 4 आदि क्या होता है?
कहीं हमें कार या मोटरसाइकिल से जाना है तो हमें जानना होगा कि गाड़ी किस चाल से चलाई जाए कि हम समय पर पंहुचे। इन सभी प्रश्नों का उत्तर गणित के ज्ञान से बहुत आसानी से मिल जाता है।
जब हम किसी की आलोचना अथवा प्रशंसा करते हैं तब तकनीकी रूप से इसमें गणित दिखायी नहीं देती है क्योंकि इसमें कोई संख्या नहीं होती हैं, लेकिन कितनी आलोचना ज़रूरी है, यह गणित ही बताता है। हमारे पास जितना अधिक गणित-कौशल रहता है, हमारे काम उतनी ही आसानी से हो जाते हैं। हम अपने दृष्टिकोण में जितने अधिक गणितीय रहते हैं, हमारे विचार उतने ही अधिक तर्कसंगत रहते हैं।
गणित का इस्तेमाल इमारतों का बेहतर डिज़ाइन तैयार करने के लिए किया जाता है। डॉक्टरों द्वारा रोगियों के लिए दवाइयों की सही मात्रा का पता करने के लिए गणित का इस्तेमाल किया जाता है।
गणित की जरूरत तब पड़ती है जब हम जानना चाहते हैं कि हम कब पैदा हुए और हमारी आज उम्र क्या है? गणित की जरूरत तब पड़ती है जब हम जानना चाहते हैं कि हमारा परीक्षा में रोल नंबर अथवा बैंक में एकाउंट नंबर क्या है और उसमें कितने पैसे जमा हैं?
गणित की जरूरत तब पड़ती है जब हम जानना चाहते हैं कि आज क्या तिथि है, अभी कितने बजे हैं, और हमें कब, कहां, और किससे मिलना है? गणित की जरूरत तब पड़ती है जब शापिंग करते समय हम जानना चाहते हैं कि हमें कितने पैसे देने हैं, हमने कितने पैसे दिए और हमें कितने पैसे वापस लेने हैं?
हमें गणित की जरूरत तब पड़ती है जब हमें अपना मकान नंबर क्या है, हमारा अस्पताल में बेड नंबर क्या है, आदि पता करना होता है। हमें अपना मोबाइल नंबर, अपने रिश्तेदारों और दोस्तों का मोबाइल नंबर आदि जानने में भी गणित की जरूरत होती है।
वैसे तो गणित अपने आप में एक अनूठा विषय है, लेकिन यह हर विषय का आधार भी है। भौतिकी, रसायन विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, लेखाशास्त्र, सांख्यिकी जैसे विषय, वास्तव में गणित पर आधारित हैं।
हर भाषा का व्याकरण तो पूर्ण रूप से गणित पर ही आधारित है। संगीत की पूरी दुनिया गणित पर ही निर्भर है। सीधी भाषा में कहा जाए तो गणित हमारे जीवन को आसान बनाने के लिए हमारे हाथों में एक उपकरण है।
हम सरलता से इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि गणित हमारे जीवन को व्यवस्थित बनाता है और हमारी कार्यशैली की अराजकता को हटाता है। गणित हमारे अंदर रचनात्मकता और समस्या-समाधान की क्षमता विकसित करता है। गणित से हमें जोखिम का आकलन करने में मदद मिलती है।
कुछ लोगों का मानना है कि गणित ऑक्सीजन की तरह है। चाहे हम हों या ना हों, पृथ्वी हो या ना हो, सूर्य हो या ना हो, नदी, पहाड़ हों या ना हों, गणित रहती है। वास्तविकता तो यही है कि गणित का अस्तित्व संसार के अस्तित्व का हिस्सा है। गणित प्रकृति की संरचना का हिस्सा है।
गणित की जरूरत केवल हमें अपनी जिंदगी में ही नहीं है, बल्कि हज़ारों मील का सफ़र तय करने वाले साइबेरियन सारस, एक जगह से दूसरे जगह पर छलाँग लगाते बंदर, बिल्ली, गिलहरी आदि सबको है।
अब प्रश्न उठता है कि आखिर यह गणित का काम हमारे शरीर में होता कहां है? कौन-सा हिस्सा यह गणितीय गणनायें करता है और किसके आदेश पर करता है?
यह सभी काम हमारा दिमाग जिसे हम मस्तिष्क कहते हैं, उसके अंदर ही होता है। यह दिल से आदेश पाता है। वैसे तो हमारी सभी ज्ञानेन्द्रियां और कर्मेन्द्रियां मिल कर तय करती हैं कि क्या आदेश दिमाग को दिल से दिलाना है।
हमारा दिमाग हमारे शरीर को आदेश देने और उसे नियंत्रित करने के लिये एक नियंत्रण केन्द्र के रूप में कार्य करता है। यह हृदय से आकार में बड़ा होता है। दिमाग हृदय से जटिल होता है। इसमें ही बुद्धि, भावनायें, व्यक्तित्व और चेतना होती है। रोजमर्रा का गणित यही प्रयोग करता है।
दिमाग हर भावनाओं और चेतनाओं के संकेतों को अपनी गणितीय भाषा में स्वतः बदल लेता है। यह इन भावनाओं को आवश्यकतानुसार कम और अधिक भी कर देता है। उदाहरण के लिये जब कोई अपना पड़ोसी किसी कष्ट में होता है तो उस समय कष्ट अधिक महसूस होता है और जब कोई दूर अपरिचित इसी कष्ट में फंसता है तो कष्ट कम होता है। ठीक यही बात अपनों और परायों की तकलीफों के बीच भी होता है।
शकुंतला देवी के अनुसार, गणित प्रकृति द्वारा उत्पन्न पहेलियों को सुलझाने का एक व्यवस्थित प्रयास है। गणित के बिना हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। हमारे आस-पास की हर चीज़ गणित है। हमारे आस-पास की हर चीज़ संख्या हैं।
वेदांग ज्योतिष में गणित के बारे में कहा गया हैः
यथा शिखा मयूराणां, नागानां मणयो यथा। तद् वेदांगशास्त्राणां, गणितं मूर्ध्नि वर्तते॥
अर्थात् जैसे मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे ऊपर है, वैसे ही वेदांग और शास्त्रों में गणित का स्थान सबसे ऊपर है।