उच्च पद पर आसीन होते ही सबसे पहले आती है : मुखरता

हर व्यक्ति स्वभावतः अंतर्मुखी होता है। अंतर्मुखीपन एक सीमित अच्छा गुण है। यह व्यक्ति के अंदर सोचने, विचारने और संकल्प लेने की दृढ़ता का निर्माण करता है। व्यक्ति इसके कारण अपने अंदर निरंतर सुधार लाता है। ऐसा व्यक्ति सृजनशील होता है। प्रगतिशील होता है। तथ्यों को परखने में माहिर होता है। मानवीय संवेदनाओं को समझने में सक्षम होता है। ऐसे व्यक्ति के पास ज्ञान बहुत होता है।

अंतर्मुखी व्यक्ति के अंदर एक सबसे बड़ा दुर्गुण होता है कि वह कठिन समय में सही निर्णय लेने में असमर्थ रहता है। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति के व्यावहारिक मित्र नहीं होते हैं। व्यावहारिक मित्र न होने के कारण उसका सामाजिक ज्ञान लगभग शून्य होता है, उसके अन्दर अनुभव की कमी रहती है, और निर्णय लेने में वह आलसी होता है।

व्यक्ति को जब कोई पद काम करने के लिए मिलता है तब सबसे पहले उसे साथी मिलते हैं, जिनसे वह सीखता है कि बातचीत में अपने ज्ञान-भण्डार से चुनकर काम की बातें समय पर कैसे निकाले। बहिर्मुखीपन इसमें उसकी मदद करता है। बहिर्मुखीपन उसे बताता है कि समस्या इंतजार नहीं करतीं हैं, समाधान भले इंतजार करे।

व्यक्ति भीड़भाड़ में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करते-करते खुल जाता है, वह दूसरों को निर्देशित करते हुए सजग हो जाता है और फिर धीरे-धीरे मुखर हो जाता है। परिणाम होता है कि उसके विचार दिल से पहले होंठों पर आते हैं और सीधे निर्देश बन जाते हैं। यही है, मुखरता। ज्ञान-भण्डार का दरवाजा खुलना, संशय मिटना और निर्णय लेने में आलसीपन को त्यागना ही मुखरता है। मुखरता के लिये बहुत ज्ञानी अथवा विद्वान होना जरूरी नहीं होता है।  

शिक्षाः

(अ) किसी का आलसीपन हटाना है तो उसे एक जिम्मेदारी का काम पकड़ा दीजिये।

(ब) किसी को समझना है तो उसे एक निर्णायक बना दीजिये।

(स) किसी को सुधारना है तो उसे सामाजिक बनना सिखा दीजिये।

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