साथी की सार्वजनिक प्रशंसा बड़ी मायने रखती है!


सम्मान बढ़ाने के लिए बोले गए दो मीठे शब्द बहुत ऊर्जावान होते हैं। टीम लीडर को अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए कि उसे अपने किस साथी से, उसका उत्साह बढ़ाने के लिए, कब, क्या कहना है कि वह अपनी पूरी लगन से अपने काम को समय पर अच्छी तरह से पूरा कर दे।

वैसे तो हर व्यक्ति धन के लिए काम करता है फिर भी उसका सार्वजनिक सम्मान बढ़ने पर उसे गौरव का अनुभव होता है और वह उस टीम के साथियों और अपने टीम लीडर से अपनत्व महसूस कर कई बार बहुत अच्छा परफॉर्मेंस दे देता है।

टीम लीडर के अच्छे गुणों में एक गुण कभी-कभी पर्सनल होना भी होता है। एक पुरानी कहावत है : डांटना चाहिए अकेले में, पर प्रशंसा करनी चाहिए सार्वजनिक तौर पर।

एक बात गांठ बांधकर रख लेनी चाहिए। अगर हम सार्वजनिक जीवन में हैं अथवा अच्छे पद पर काम कर रहे हैं तो आज के समय में कोई भी काम किसी को डांट कर, गुस्सा होकर, अथवा चिल्लाकर नहीं लिया जा सकता है। ऐसा करके उसे नौकरी से निकाला तो जा सकता है पर उससे काम नहीं लिया जा सकता है। फिर अपनी शान्ति खोने से फायदा क्या?

टीम लीडर के अंदर वैसे तो कई गुण जरूरी होते हैं पर उनमें से एक प्रमुख है, और वह है : विनम्रता। यह सभी गुणों के ऊपर हावी रहता है। कुछ विद्वान तो इसे सभी गुणों का सिंथेसिस मानते हैं यानि अगर कोई विनम्र है तो वह सर्वगुणसंपन्न है।

विनम्रता का मतलब है कि हम दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान करते हैं और उनके साथ व्यक्तिगत रूप से उतना ही सम्मान से पेश आते हैं जितना हम खुद के साथ व्यवहार किए जाने की आशा करते हैं।

विनम्रता की परख तब होती है, जब कोई समस्या आ जाती है और समाधान तुरंत दिखाई नहीं देता है। समाधान ढूंढने में हम कामयाब नहीं रहते हैं। साथी भी हाथ उठा देते हैं। समय निकलता जा रहा होता है। पैर के नीचे से जमीन खिसकती जा रही होती है। खतरे की तलवार लटक रही होती है। साथी छोड़ने वाले होते हैं।

यही समय होता है विनम्र, शान्त, धैर्यवान रहने का। यही समय होता है कि हम याद करें कि अगर समस्या है तो समाधान ज़रूर निकलेगा। अगर चारों तरफ पानी है तो कहीं तो किनारा होगा। कहीं तो यह पानी जमीन से टकराकर रुका होगा। कहीं तो कोई होगा जो पानी को बाहर बहकर नहीं जाने दे रहा होगा, अन्यथा पानी का स्वभाव तो बहना है, रुकना नहीं है, फिर रुका कैसे है?

जैसे ही यह याद आयेगा, हम अपना आपा नहीं खोएंगे, क्रोधित नहीं होंगे, गुस्सा रोक देंगे, विनम्रता नहीं छोड़ेंगे और अपने साथियों का हौसला बढ़ाने में लग जाएंगे, उनमें नई ऊर्जा भरेंगे, उनकी घबड़ाहट दूर करेंगे और समस्या है तो समाधान ज़रूर है, इसे सच कर दिखाएंगे।

गुस्सा तो कोई हो सकता है, शान्त बिरला ही रह पाता है। यही शान्त रहना विनम्रता है, एक मंझे हुए मांझी की तरह। जैसे एक सधा हुआ मांझी मंझधार में अपना पतवार नहीं छोड़ता है, अपनी सूझबूझ बनाये रखता है, ठीक उसी प्रकार एक दूरदर्शी और अनुभवी टीम लीडर समस्याओं से घिरने पर और भी अधिक शान्त हो कर सोचने के लिए अंतर्मुखी हो जाता है। उसे याद आता है कि अगर अपने से नहीं हारे तो जीत पक्की है।

एक अच्छा टीम लीडर याद करता है कि एकबार शान्ति हटने यानि विनम्रता छोड़ने के बाद उत्पन्न हुई अशांति हटाने में बहुत समय लगता है। जब दुबारा शान्ति आती है तबतक बहुत कुछ बिगड़ गया होता है, बहुत बिछड़ गए होते हैं।

अच्छा नायक, अच्छा मांझी, अच्छा व्यक्तित्व, बांधने का काम करता है, जोड़ने का काम करता है, बचाने का काम करता है, एक दूसरे को नजदीक रखने का काम करता है, उनमें मिठास भरता है, कड़वाहट हटाता है, सबको साथ रखता है, और किसी को दूर नहीं जाने देता है।

अच्छा लीडर अपने कठिन समय के व्यवहार, आचरण से अपने साथियों को अपनी काबिलियत का कायल बनाता है, सबको एहसास कराता है कि सही आदमी को जिम्मेदारी दी गई है और उसके बॉस का विश्वास उसके प्रति सही है। तभी तो उसके साथी कह उठते हैं कि यार, हम तो इसी की टीम में रहेंगे। इसी से हमारी नौका पार लगेगी। यही सबका बेड़ा पार लगाता है।

कभी नहीं भूलना चाहिए कि एक विनम्रता का गुण, सौ दूसरे गुणों पर भारी पड़ता है।

अच्छा टीम लीडर वह होता है जो कृष्ण की वह कथा याद रखता है कि श्रीकृष्ण के पास पहली गाली पर सिर काटने की शक्ति है फिर भी वह शिशुपाल की 99 और गलियां सुन लेते हैं और अपनी विनम्रता नहीं छोड़ते हैं।

विनम्रता की सीख श्रीकृष्ण के सामान्य आचरण से लेनी चाहिए कि रखते वह सुदर्शन चक्र हैं और बजाते मुरली हैं।

विनम्रता की सीख श्रीकृष्ण के उस व्यवहार से लेनी चाहिए कि द्वारिका के वैभव से संपन्न होने के बाद भी सुदामा जैसे अपने मित्र का पांव पखारते हैं।

विनम्रता की सीख श्रीकृष्ण के साथ घटी कालिया नाग की उस घटना से लेनी चाहिए कि मृत्यु जैसे भयंकर नाग के फन पर खड़े होकर वह बांसुरी बजाते हैं और डरते नहीं हैं, बल्कि शान्त बने रहते हैं।

और सबसे बड़ा विनम्र होने का उदाहरण हमें श्रीकृष्ण के उस काम से मिलता है कि अनंत सामर्थ्य रखने और द्वारिका का राजा होने के बावजूद भी महाभारत के युद्ध में अपने मित्र अर्जुन का सारथी बनते हैं, उसका रथ चलाते हैं, और वह भी इस प्रतिज्ञा के साथ कि कोई भी परिस्थिति युद्ध में क्यों न आये, वह खुद शस्त्र नहीं उठायेंगे। शस्त्र उठाने का मतलब होता है क्रोधित होना, गुस्सा होना, शान्ति छोड़ना।

विनम्र व्यक्ति ही किसी का सम्मान बढ़ा सकता है, शेष तो अपने ही सम्मान के लिए भूखे रहते हैं। जब हम दूसरे का सम्मान बढ़ाते हैं तब हमारा सम्मान खुद-ब-खुद बढ़ जाता है। सच कहा है : बड़े लोग ही बड़प्पन दे सकते हैं।

सूक्ति लहर में एक श्लोक है:


नमन्ति फलिनो वृक्षाः नमन्ति गुणिनो जनाः।
शुष्ककाष्ठश्च मूर्खश्च न नमन्ति कदाचन॥

अर्थात्:
जिस प्रकार फलों से लदी हुई वृक्ष की डालियां झुक जाती हैं, उसी प्रकार अच्छे गुणों से भरा व्यक्ति दूसरों को सम्मान देने के लिए विनम्र रहता है। मूर्ख जन उस सूखी लकड़ी के समान होते है जो कभी नहीं झुकती, अर्थात् मूर्ख दूसरों का सम्मान नहीं करता है।

हमें नहीं भूलना चाहिए:
(अ) कम और मीठा बोलना विनम्रता है।
(ब) कठिन समय में साथी के काम की प्रशंसा उसके प्रति अपनापन है।
(स) समाधान ढूंढते समय पुरानी सफलता को याद दिलाकर टीम का मनोबल बढ़ाना विनम्र होना है।

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