एनलिटिकल प्रतिक्रिया में शब्दों का चुनाव सोच-समझ कर हो!
विश्लेषण (Analysis) का अर्थ होता है : बारीकी से अच्छे-बुरे को परखना। यह परख किसी व्यवस्था, कार्य-पद्धति, काम करने वाले की योग्यता, कौशल, और उसकी उपयोगिता की हो सकती है।
विश्लेषण में हम विशेषताओं को जानने की कोशिश करते हैं।विश्लेषण को हम आलोचना या विवेचना भी कह सकते हैं। विश्लेषण इस धारणा पर आधारित है कि समस्याओं के समाधान ढूंढने में यह हमारी मदद करता है।
विश्लेषण से संस्थान और उसमें काम करने वालों को फायदा होता है क्योंकि इसकी रिपोर्ट से वे अपनी कमियां जान जाते हैं, और उनमें सुधार करके अपने को अच्छा बना लेते हैं। किसी चीज को अच्छी तरह से करने के लिए हमें क्या जानना जरूरी है, यह विश्लेषण ही बताता है। विश्लेषण से हर एस को पता चल जाता है कि जो कुछ वह जानता है उसमे गलत क्या हैं।
SWOT एक संक्षिप्त शब्द है। यह (Strength) ताकत, (Weakness) कमजोरी, (Opportunity) अवसर, (Threat) खतरा के पहले अक्षरों को लेकर बना है। Swot Analysis har कार्यस्थल पर प्रयोग किया जाता है। इसमें हम अपनी ताकत, अपनी कमजोरियों, अपने लिए अवसरों, और अपने प्रति खतरों को समझते हैं।
विश्लेषण में यह देखा जाता है कि जो काम किसी को दिया गया, अन्त में उससे क्या लाभ या हानि हुई? उसे पूरा करने में क्या परेशानी आई? क्या उसे और बेहतर तरीके से किया जा सकता था? क्या उसे किसी और साथी से कराना सही रहता? क्या उस काम को करने के लिए और अधिक ज्ञान, प्रशिक्षण, समझ, और कौशल की जरूरत थी? क्या काम करते समय संस्थान ने उन सभी सुविधाओं को उपलब्ध कराया जो जरूरी थे?
जब हम काम करने वालों के कौशल, अनुभव, शिक्षा और क्षमता का मूल्यांकन सही तरीके से कर लेते हैं तब किसी काम को हाथ में लेने में आसानी होती है क्योंकि हमें पता होता है कि हम कितने सही तरीके से उसे पूरा कर पाएंगे।
बॉस हमेशा सही होता है, यह सोच रखने वाले पीछे छूट गए हैं। वह ज़माना चला गया है। अब बॉस भी कंधे से कंधा मिलाकर चलता है और आगे बढ़ कर जिम्मेदारी लेता है।
विश्लेषणात्मक अध्ययन बताता है कि किसे, कौन-सा काम, ठीक से करने के लिए दिया जा सकता है। विश्लेषण बताता है कि संस्थान का गुणात्मक तथा मात्रात्मक दृष्टि से प्रदर्शन का स्तर क्या है।
कार्य विश्लेषण मानव संसाधन प्रबन्धन का आवश्यक आधार है। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यह विवरणात्मक प्रकृति का होता है। इसमें कार्य करने के लिए जरूरी क्रियाकलाप, कर्तव्य, उत्तरदायित्व, कार्य की भौतिक दशा, तथा उसमें प्रयुक्त यंत्र एवं उपकरण आदि का उल्लेख रहता है। यह एक ऐसा लिखित निर्देश पत्र है, जिसमें दर्शाया जाता है कि कार्य-धारक से अपेक्षाएं क्या-क्या हैं? इनके पूरा करने में उसे किन साधनों की आवश्यकता होगी? उसके कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व क्या होगें?
संक्षेप में यह कह सकते है कि यह कार्य-विवरण का निर्देश है कि क्या करना है, कैसे करना है, तथा क्यों करना है? यह प्रत्येक कार्य का एक मानक होता है।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि जब हम किसी सहकर्मी के विश्लेषण का टीम लीडर के रूप में सार्वजनिक उल्लेख कर रहे हों तब उसकी विशिष्टता, उसकी मानवीय योग्यता, उसके मूल्य, उसकी पात्रता, उसकी निपुणता का ही उल्लेख करें; उसकी कमियों को सार्वजनिक न करें। कमियों को उसे बुलाकर बंद कमरे में अकेले में बताएं।
बॉस की प्रबन्धकीय निपुणता, निर्णय लेने की निपुणता, कार्य की व्याख्या करने की निपुणता, अवश्य सबके सामने सार्वजनिक रूप से बतानी चाहिए।
विश्लेषणात्मक सोच, किसी मुद्दे के बारे में व्यवस्थित और तार्किक तरीके से सोचने की क्षमता है। इसका इस्तेमाल व्यावसायिक फ़ैसले लेने में टीम लीडर करता है। यह सोच किसी परिस्थिति के मज़बूत और कमज़ोर पक्षों को समझने में तर्कसंगत फ़ैसला लेने में मदद करती है। विश्लेषण करते समय क्यों, कैसे, कौन या कब को ध्यान में रख कर प्रश्नों का उत्तर ढूंढते हैं।
किसी संस्थान के प्रबंधक और कर्मचारी हर दिन अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर निर्णय लेते हैं। उनका निर्णय स्वीकृत प्रथाओं, व्यावसायिक सोच पर आधारित होता है। उनका निर्णय उचित है या नहीं, यह तब तक नहीं पता चलता है जब तक अंतिम परिणाम सामने नहीं आ जाता है।
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के अनुसार केवल 38% कर्मचारियों के पास ही मजबूत विश्लेषणात्मक कौशल होता है।
विश्लेषण एक प्रकार से समस्या जैसी पहेली का समाधान या उत्तर ढूंढने का प्रयास होता है। पुराना नियम है कि समाधान ढूंढने के लिए बड़ी समस्या को कई छोटी समस्याओं में बांट दिया जाए। यानि एक पहेली को कई छोटी-छोटी पहेलियों में तोड़ दिया जाए। इसके पीछे की सोच यह है कि छोटी पहेली हल करना आसान होता है।
विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण के बारे में सीआईए के पूर्व विश्लेषक मॉर्गन जोन्स ने द थिंकर्स टूलकिट , में लिखा है: हमें यह सीखना होगा कि मानव मन की उन मजबूरियों से कैसे निपटा जाए जो विश्लेषण को परास्त करके मन को विकल्पों के प्रति बंद कर देती हैं।
आमतौर पर किसी समस्या का विश्लेषण हम अपने निष्कर्ष तैयार करके शुरू करते हैं। इस में हम शुरुआत उस स्थान से करते हैं, जहां विश्लेषणात्मक प्रक्रिया का अंत होना चाहिए। हमारा विश्लेषण आमतौर पर उस समाधान पर केंद्रित होता है जिसे हम सहज रूप से पसंद करते हैं। यह सही नहीं है। दिमाग खुला रखकर लिए गए निर्णय का परिणाम हमेशा व्यापक और अधिक प्रभावी होता है।
हर विश्लेषणकर्ता को याद रखना चाहिए कि ज्यादा सिखाना या आदर्श की स्थिति की आशा करना, काम करने वालों में नकारात्मक प्रभाव छोड़ता है।
कबीर ने लिखा है:
काहू का नहिं निन्दिये, चाहै जैसा होय
फिर फिर ताको बन्दिये, साधु लच्छ है सोय
अर्थात्
किसी भी व्यक्ति का दोष देखकर भी उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए। अपना कर्तव्य होना चाहिए कि जो साधु और गुणी हैं, उनका सम्मान करें और उनकी बातों को समझें।
ध्यान रखना चाहिए कि विश्लेषण के तथ्य
(अ) बार-बार न दुहराए जाएं
(ब) किसी के लिए व्यक्तिगत न हों
(स) सामूहिक जिम्मेदारी सिखाएं