संभव है, नई खोज को सदैव सम्मान न मिले!


संख्याएं दो प्रकार की होती हैं : वास्तविक और काल्पनिक। वास्तविक संख्याएं भी दो तरह की होती हैं: परिमेय (Rational) और अपरिमेय (Irrational)।

परिमेय संख्या वह संख्या होती है जिसे दो पूर्ण संख्याओं के अनुपात के रूप में लिखा जा सकता है।

जैसे: 2 = 2 : 1, 3.5 = 7 : 2.

अपरिमेय संख्या वह संख्या है जिसे दो पूर्ण संख्याओं के अनुपात में नहीं लिखा जा सकता है।

जैसे: मूल 2 अर्थात् (√2)। इसे वर्गमूल 2 भी पढ़ा जाता है। इसको दो पूर्ण संख्याओं के अनुपात में नहीं लिखा जा सकता है।

आज की यह कहानी इसी अपरिमेय संख्या की खोज से सम्बंधित है।

इस अपरिमेय संख्या की खोज ग्रीक दार्शनिक हिप्पासस ने पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में की थी।

हुआ यूं कि एक दिन हिप्पासस ने कर्ण की लंबाई निकालने के लिए एक समद्विबाहु समकोण त्रिभुज की कल्पना किया। समद्विबाहु त्रिभुज वह त्रिभुज होता है जिसकी दो भुजाएं बराबर लंबाई की होती हैं। समकोण त्रिभुज वह त्रिभुज होता है जिसका एक कोण 90 अंश का होता है।

हिप्पासस ने समद्विबाहु समकोण त्रिभुज में बराबर भुजाओं की लंबाई 1 इकाई लिया। अपने गुरु पाइथागोरस के सिद्धांत के अनुसार समकोण त्रिभुज में भुजाओं के वर्गों का योग का वर्गमूल कर्ण की लंबाई होनी चाहिए।

हिप्पासस ने कर्ण की लंबाई मूल 2 निकाली। यह पूर्ण संख्या नहीं थी।

(इसका मान वर्तमान में दशमलव में 1.41421356237…. निकाला गया है )

इसे दो पूर्ण संख्याओं के अनुपात में लिखना संभव नहीं था क्योंकि इसका कोई निश्चित मान नहीं था।

हिप्पासस की इस खोज को उस समय किसी ने स्वीकार नहीं किया।

इसका कारण यह था कि लोग उस समय के महान दार्शनिक और गणितज्ञ पाइथागोरस के इस विचार से सहमत थे कि प्रकृति में केवल सकारात्मक संख्याएं ही मौजूद हो सकती हैं। जैसे, 1, 1/2, 4/5, आदि।

उस समय, यह ग्रीक मान्यता थी कि संख्याएं ईश्वर का प्रतिनिधित्व करती थीं, समस्त विश्व को संख्याओं से व्यक्त किया जा सकता है, और किसी निश्चित आकार की इकाई एक सीमित संख्या से बनी होती है।

हिप्पासस की खोज का निष्कर्ष निकला कि संख्याएं दो तरह की होती हैं: एक असतत जो पूर्ण संख्याओं का समूह है। दूसरी है: सतत जिसे हिप्पासस ने खोज निकाला था।

जब हिप्पासस ने यह दिखा दिया कि पूर्ण संख्याओं के अलावा भी संख्याएं हो सकती हैं, जैसे: मूल 2, मूल 3 आदि, तब सब उसके विरोध में हो गए।

किंवदंती है कि हिप्पासस की खोज के लिए उसका मज़ाक उड़ाया गया और एक दिन उसे समुद्र में फेंक दिया गया। कुछ का कहना था कि वह खुद समुद्र में कूद गया।

पाइथागोरस को मानने वाले पाइथागोरियन कहलाते थे। वे रहस्यमय एवं गुप्त स्वभाव के थे। वे अंकों में ईश्वर को देखते थे।

इस समुदाय की स्थापना संभवतः दक्षिणी इटली के समोस के पाइथागोरस द्वारा की गई थी। यह वही ग्रीक विद्वान थे जिनके नाम पर प्रसिद्ध पाइथागोरस प्रमेय का नाम रखा गया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने प्रमेय को सिद्ध किया भी था या नहीं।

पाइथागोरस की मृत्यु के बाद, उसके समुदाय पूरी तरह से गायब हो गया।

पाइथोगोरस ने कहा था कि संख्या ही विचारों और रूपों का शासक है और देवताओं और राक्षसों का कारण है।

पाइथोगोरस का दृष्टिकोण धार्मिक और वैज्ञानिक था, उनकी नजर में विज्ञान और धर्म एक-दूसरे से सम्बंधित थे।

हिप्पासस ने पाइथागोरस की इस मान्यता का खंडन किया कि सब कुछ संख्याओं के माध्यम से समझा जा सकता है। हिप्पासस की संख्या को कालांतर में अपरिमेय (Irrational) संख्या कहा गया। अपरिमेय संख्या वह संख्या होती है जिसका न तो कोई निश्चित मान होता है, और न वह आवर्ती होती है। आवर्ती संख्या 1/3 जैसी होती है जिसका मान 1.33333..
(Irrational number is a number that has neither definite value nor is recurring)।

बहुत-सी खोजें तत्काल सम्मान नहीं पाती हैं, पर कालांतर में हर कार्य की महत्ता को स्वीकार अवश्य किया जाता है।

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