रामानुजन वह ज्ञानपुंज हैं जिन्हें अनंत का ज्ञान था!


हार्डी ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के अपने साथी प्रोफेसर जे.ई.लिटलवुड के साथ मिलकर जब रामानुजन के द्वारा 1913 में उनको भेजे गए सभी प्रमेयों का विश्लेषण किया तो वह इस बात पर विश्वास नहीं कर पाए कि रामानुजन का गणित इतना मौलिक और अंतर्दृष्टि से भरा हुआ हो सकता है।

वह आश्चर्यचकित थे कि अपनी छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने इतनी सारी गणितीय पहेलियाँ हल कर ली थीं जिनके बारे में दुनिया को पता भी नहीं था।

उनका कहना था कि सीखने के उनके गैर-पारंपरिक तरीके से पता चलता है कि वे अनुपम बुद्धिमान थे, उनका ज्ञान-भंडार अद्भुत था, और उनमें विलक्षण प्रतिभा थी।

पीसी महालनोबिस रामानुजन से छः साल छोटे थे। महालनोबिस वही व्यक्ति हैं जिन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना की थी।

रॉबर्ट कैनिगेल ने रामानुजन की जीवनी ‘द मैन हू न्यू इनफिनिटी’ लिखी थी। उसमें उन्होंने एक मजेदार किस्सा लिखा है।

महालनोबिस इंग्लैंड में थे। उनके पास स्ट्रैंड नामक एक ब्रिटिश मासिक पत्रिका में प्रकाशित एक गणितीय पहेली थी। पहेली में बताया गया था कि एक दोस्त एक गली में रहता है, जिसमें 1 से आगे के घरों का नंबर है। वहाँ 50 से ज़्यादा घर हैं। अगर दूसरी तरफ़ के सभी घरों का योग एक दूसरे के बराबर हो, तो दोस्त के घर का नंबर क्या होगा?

महालनोबिस जब रामानुजन के घर गए तो उन्होंने रामानुजन से इस पहेली का उत्तर जानना चाहा। रामानुजन सब्जी काट रहे थे। उन्होंने बिना कागज़ का इस्तेमाल किए उस पहेली का उत्तर महालनोबिस को बता दिया।

हालांकि महालनोबिस अपने साथ एक जवाब लेकर गए थे लेकिन वह जुगाड़ यानि ट्रायल एंड एरर मैथड से निकला था।

महालनोबिस के पास 288 घरों का जवाब तैयार था और दोस्त के घर का नंबर 204 था।

दूसरी ओर, रामानुजन ने कहा हम इसे कई घरों के लिए हल कर सकते हैं। अगर घरों की संख्या 8 है तो मित्र के घर का नंबर 6 होगा। अगर घरों की संख्या 49 है तो मित्र के घर का नंबर 35 होगा, 288 घरों में मित्र का घर 204, 1681 घरों में मित्र का घर 1189 होगा। कहां एक उत्तर की बात थी, यहां तो उत्तरों की बरसात हो गई।

महालनोबिस आश्चर्यचकित थे। उन्होंने रामानुजन से पूछा कि वह इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे?

रामानुजन ने कहा,
“जब मैंने समस्या सुनी तो तुरंत यह स्पष्ट हो गया कि इसका समाधान स्पष्ट रूप से एक सतत भिन्न होना चाहिए। फिर मैंने सोचा, कौन सी सतत भिन्न? और जवाब मेरे दिमाग में आ गया”।

“उत्तर मेरे दिमाग में आया”, यह गणितीय प्रतिभा का सबसे दिलचस्प पहलू था। जिन चीज़ों पर दूसरे लोग अपना सिर फोड़ते हैं, उनका दावा था कि “वे मेरे दिमाग में आईं”।

ऐसे कठिन गणितीय समीकरण और प्रमाण उनके दिमाग में कैसे आए, यह कोई नहीं समझ सकता था। पूछे जाने पर, उन्होंने बताया कि ऐसा उनकी कुलदेवी नामगिरि के कारण होता है।

रामानुजन ने करीब पांच साल इंग्लैंड में बिताए थे। वह 1914 में कैम्ब्रिज गए। उनकी गणितीय प्रतिभा इसी से पता चलती है कि रामानुजन की बैचलर डिग्री को 1916 में PhD में बदल दिया गया।
उनको लंदन मैथेमेटिकल सोसाइटी का 1917 में सदस्य चुना गया और 1918 में रॉयल सोसाइटी का फैलो। वह पहले भारतीय थे जिन्हें इस प्रकार का आदर मिला था।

1917 में उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और वह 1919 में भारत लौट आए। 32 वर्ष की आयु में 1920 में उनका निधन हो गया।

रामानुजन के अनुसार गणित में खोज करना, ईश्वर की खोज करना है। रामानुजन की रुचि गणित में इतनी गहरी थी कि वे रात-दिन, सुबह-शाम, हर पल संख्याओं के गुणधर्मों के बारे में ही सोचते रहते थे। अपनी इस सोच में आये नये सूत्रों को वह कागज में लिख लेते थे।
उन्होंने कई खोजें की: 
उनमें से एक है, संख्या 1729 जिसे
रामानुजन संख्या कहा जाता है। यह अपने प्रकार की सबसे छोटी संख्या है जिसे दो अलग-अलग तरीकों से दो घनों के योग के रूप में लिखा जा सकता है।
1729=1^3+12^3=10^3+9^3

जॉर्ज एंड्रयूज़ ने साल 1976 में रामानुजन की एक नोटबुक की खोज की थी। बाद में इसे एक किताब के रूप में प्रकाशित किया गया। इसमें उनकी लिखी प्रमेयों के रिजल्ट्स हैं पर उनका प्रूफ नहीं है।

रामानुजन ने हाइपरजियोमेट्रिक सीरीज़, रीमान सीरीज़, एलिप्टिक इंटीग्रल, माॅक थीटा फ़ंक्शन, और डाइवर्जेंट सीरीज़ का सिद्धांत जैसे कई क्षेत्रों में काम किया है।

पाई की अनंत श्रेणी की खोज रामानुजन ने पाई के अंकों की गणना के लिए की है।

रामानुजन इंग्लैंड जाने से पहले ही गणित के 3,542 प्रमेय लिख चुके थे। मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च ने उन्हें प्रकाशित किया है।

रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 में आज के तमिलनाडु में हुआ था। रामानुजन का पूरा नाम श्रीनिवास अयंगर रामानुजन है। रामानुजन के पिता का नाम श्रीनिवास अयंगर, माता का नाम कोमलतम्मल और पत्नी का नाम जानकी था।
भारत में हर साल रामानुजन के जन्मदिन 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह देश के उन महान गणितज्ञों को न केवल एक श्रद्धांजलि होती है, बल्कि यह भावी पीढ़ियों को गणित के महत्व और उसके प्रयोगों से जुड़ने के लिए प्रेरित करने का भी दिन होता है।

यह गणित दिवस वर्ष 2012 से मनाया जा रहा है।

गणितज्ञ जीएस हार्डी ने श्रीनिवास रामानुजन को यूलर, गॉस, आर्कमिडीज तथा आईजैक न्यूटन जैसे दिग्गजों की समान श्रेणी में रखा था।

हार्डी रामानुजन से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने गणितज्ञों की योग्यता जांचने के लिए 0 से 100 अंक तक का एक पैमाना बनाया। इस परीक्षा में हार्डी ने खुद को 25 अंक दिए। महान गणितज्ञ डेविड गिलबर्ट को 80 और रामानुजन को 100 अंक दिए।हार्डी रामानुजन को दुनिया का महान गणितज्ञ कहते थे।

रामानुजन के कुछ कथन हैं:

मेरे लिए एक समीकरण का कोई मतलब नहीं है, जब तक कि यह भगवान के बारे में एक विचार व्यक्त नहीं करता है।

गणित के बिना, आप कुछ भी नहीं कर सकते। आपके आसपास सब कुछ गणित है। आपके आस-पास सब कुछ नंबर है।

महान गणितज्ञ को सादर नमन!

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