जीवन में सफलता के लिये हमेशा मेहनत जरूरी नहीं होती है। यह कभी-कभी सिफारिश और कभी-कभी शार्टकट से भी मिल जाया करती है। सफलता के लिये जरूरी होता है कि हम आउट ऑफ बाक्स थिंकिंग का सहारा लें। लीक से हटकर सोच सफलता में ज्यादा सहायक होती है। लीक पर चलने वाले भीड़ का हिस्सा होते हैं और भीड़ किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा करती है।

जीवन को सुंदर बनाने के लिये कभी भी शार्टकट काम नहीं करता है। जीवन कभी भी शार्टकट से अच्छा नहीं बनता है। इसके लिये जरूरी होता है कि हम सदैव अनुशासित रहें, प्रकृति के साथ ताल-मेल बिठाकर चलें, और हर एक से मधुर बने रहें।

जीवन में मधुरता खुश रहने से आती है, खुशनुमा क्षण मस्ती से आते हैं और मस्ती स्वस्थ जिंदगी का हिस्सा होती है। मस्ती अल्हड़पन से आती है और अल्हड़पन के लिये जरूरी होता है कि हम सदा चिंता से मुक्त रहें।

हर एक मनुष्य की चाह होती है कि वह औरों से ज्यादा अच्छा बने। सुनने में तो यह चाह बहुत साधारण लगती है पर ऐसा होना आसान नहीं होता है। इसके लिये कुछ साधारण काम करने पड़ते हैं। इन कामों का रोजाना अभ्यास करना पड़ता है। चलिये, जानते हैं आगे इस लेख में कि क्या चीजें जरूरी होती हैं: जीवन को उल्लासमय और सफल बनाने के लिये?

पहली जरूरी बात : हमें अपने अंदर लगातार सुधार की ज्योति जलाये रखनी है

हम चाहें जितने बड़े क्यों न हो जायें, जितने बड़े पद पर क्यों न पहुंच जायें, हममें सुधार की जरूरत हमेशा रहती है। हमेशा कोई-न-कोई कमी हममें बनी रहती है। कभी भी हम संपूर्ण नहीं हो सकते हैं। हम कभी भी परफेक्ट नहीं हो सकते हैं। परफेक्शन गणितीय भाषा में अनंत की ओर जाना होता है।

अच्छे जीवन का उद्देश्य कभी अनंत की यात्रा नहीं होता है। अच्छे जीवन का उद्देश्य सफल होना होता है। परफेक्शन से सफलता नहीं मिलती है। सफलता भले हमें परफेक्ट बनने की राह दिखा दे, पर परफेक्ट का सफल होना बिल्कुल जरूरी नहीं होता है। परफेक्शन और सफलता दोनों अलग-अलग ध्रुव हैं।

दूसरी जरूरी चीजः हमें अपने अंदर जीने की वजह तलाश करनी है

हर व्यक्ति अपने में एक स्वतंत्र इकाई होता है। हर एक के जीवन की कार्यशैली अलग होती है। कोई बागवानी में रूचि लेता है तो कोई किसी की मदद में ही आनंद पाता है। कोई शिक्षा देने को अपने जीवन का उद्देश्य बनाता है तो कोई धन कमाने की चाह लिये फिरता रहता है। कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजिनियर, तो कोई प्रशासक। हर एक को अपने जीवन को शुरूआत से ही एक लक्ष्य की ओर लेकर जाने की बात सोचनी चाहिये। यह नहीं कि एक दिन हम जीविका कमाने की ओर बढ़ें और दूसरे दिन सब छोड़कर दानदाता बनने की ओर चल पड़ें।

तीसरी चीज : हम न भूलें कि हर चीज की खूबसूरती उसके अधूरेपन में होती है

हमें नहीं भूलना चाहिये कि हर चीज तभी खूबसूरत लगती है जब उसमें कुछ कमी होती है। खूबसूरती की परिभाषा भी यही है कि जो क्षण-क्षण बदले, वही खूबसूरती है।

जब कोई चीज टूट जाये तो उसे जोड़ने की कोशिश होनी चाहिये। उसे फेंकने के बारे में नहीं सोचना चाहिये। टूटी चीजों को खूबसूरत तरीके से जोड़कर और भी खूबसूरत बनाने के बाद सालों-साल उसे देखकर खुश हुआ जा सकता है। कोई भी चीज कमजोरी से नहीं टूटती है, वह लापरवाही से टूटती है।

इससे सबक लेना चाहिये कि क्या कमी थी, क्या लापरवाही थी कि यह टूट गयी। यह सोच शरीर, वस्तु और सोच, सब पर एक जैसी लागू होती है।

हमारा काम होना चाहिये कि जहां हमें कमी दिखायी दे, उसे हम अपनी सोच की खूबसूरती से भर दें। दरारों को बीज से भरने की तैयारी करनी चाहिये। एक दिन वहां हरियाली नजर आयेगी। दरारों को सुनहले रंगों से भरना चाहिये, वह नयापन हमेशा हमारी याद दिलायेगा। जो चीज जैसी है, उसे वैसे ही रहने देना चाहिये, बस उसकी कमी दूर कर देनी चाहिये। वह सुंदर लगने लगेगी।

हमें भी वैसा ही रहना चाहिये जो हम हैं। हमें दूसरों की कापी नहीं बननी चाहिये। हमें हमारी वास्तविकता ही सुंदर बनाती है।

चौथी बात : जो नहीं बदला जा सकता है, उसे वैसे ही स्वीकार करना सीखना चाहिये

ऐसा करना हार नहीं होती है। ऐसा करना अपना समय और शक्ति को बचाकर बुद्धिमान बनना होता है। पहाड़ हटाने के बारे में सोचना बुद्धिमत्ता नहीं होती है, पहाड़ में सुरंग अथवा सड़क बनाना बुद्धिमत्ता होती है।

पांचवी बात: हर छोटी चीज पर रियेक्ट नहीं करना चाहिये

मुश्किल समय में भी शांत रहने की कोशिश करनी चाहिये। शुरू  में यह आसान नहीं होता है पर आगे चलने पर यह बहुत कठिन नहीं रह जाता है। शांत वही रहता है जो दूसरों पर किसी प्रकार का दोष नहीं लगाता है और न उसका स्वभाव किसी को दोषी बनाना होता है। कम बोलना और अनावश्यक तर्क न करना जीवन को आनंदमय बनाता है। अधिकांश चीजों को नजरंदाज करना और केवल उपयोगी चीजों पर ही ध्यान देना हमारा उद्देश्य होना चाहिये। हमें कमी निकालने के बजाय अपना समय समाधान ढूंढ़ने में लगाना चाहिये।

छठवीं बात: खुद की तुलना दूसरों से नहीं करनी चाहिये

तुलना असमंजस में डालती है और असहाय बनाती है। तुलना से टेंशन बढ़ता है और टेंशन से बीमारी आती है। हर एक व्यक्ति यूनिक होता है फिर उनमें तुलना कैसे की जा सकती है। जब हर एक के उंगलियों के निशान नहीं मिलते तो उनका स्वभाव और सफलता कैसे एक जैसे हो सकते हैं?

सातवीं बात : किसी भी चीज को बेकार नहीं समझना चाहिये

हमें किसी भी चीज को बेकार नहीं समझना चाहिये। अगर वह चीज है तो उसकी कोई-न-कोई उपयोगिता अवश्य होगी। हमें उसकी उपयोगिता तलाश करनी चाहिये। और हां, अगर कोई कमी उसमें है तो उसमें अपनी खूबसूरती जोड़कर उसे अच्छा बनाना चाहिये।

और अंत में,

प्रकृति की चीजों को उतना ही उपयोग करना चाहिये जितनी जरूरी हो। अनावश्यक उपयोग नुकसानदायक होता है, हमारे लिये, हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिये और हमेशा हमेशा के लिये।

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