कौड़ी के कौड़ी या कौड़ी का एक
बहुत समय पहले की बात है। साधूलाल अपने बेटे संतलाल के साथ जा रहा था। बेटे की अपने पिता के साथ पहली यात्रा थी। पिता घर से व्यवसाय की खोज में और पैसा कमाने निकला था।
कई दिनों की गांव, नगर, जंगल, नदी, नालों, झीलों, झरनों, पहाड़ों, दर्रों, घाटियों, चारागाहों, मरुस्थलों की यात्रा के बाद दोनों एक खूबसूरत शहर में पहुंचे।
संतलाल ने देखा कि एक आदमी बटेर बेंच रहा है।
बटेर वाला जोर-जोर से बोल रहा था: कौड़ी के कौड़ी, कौड़ी के कौड़ी।
संतलाल ने अपने पिता से कहा: बाबूजी बटेर।
साधूलाल ने कहा: बेटा बटेर बहुत मंहगा है, आगे चलो, खरीद देंगे।
बहुत समय बीत गए। साधूलाल ने बड़ी मेहनत की और बहुत धन कमाया।
एक दिन पिता-पुत्र ने तय किया कि बहुत दिन हो गये हैं। अब घर चलना चाहिये। जब पिता और पुत्र वापिस घर लौट रहे थे तब रास्ते में फिर वही बटेर वाला मिला।
संतलाल ने पूछा: चाचा, अब बटेर कैसे बेंच रहे हैं, आप?
बटेर वाले ने कहा: बेटे, बटेर बड़े मंहगे हैं।
व्यापारी के बेटे संतलाल ने पूछा: फिर भी, कैसे हैं?
बटेर वाले ने कहा: कौड़ी का एक।
व्यापारी पिता साधूलाल बोला: बेटे, ले लो, जितने चाहो, ले लो। सस्ते तो हैं।
बटेरवाला आश्चर्य चकित होकर पिता और पुत्र दोनों को बहुत देर तक निहारता रहा…
सच कहा है: समय अनमोल है, पैसा नहीं। जब पास में पैसा नहीं होता है, तब चीजें महंगी लगती हैं; जब आदमी के पास पैसा खूब होता है, तब चीजें सस्ती लगती हैं।
(7680 फूटी कौड़ी = 2560 कौड़ी = 256 दमड़ी =128 धेला = 192 पाई = 64 पैसा =16 आना =1 रुपया)
कौड़ी संख्या के लिए भी उपयोग में लाई जाती है। एक कौड़ी में बीस वस्तुयें मानी जाती हैं।