हर पर्व कुछ सिखाता है !

देवोत्थान एकादशी भगवान विष्णु का चार माह के बाद योगनिद्रा से जागने का दिन है। इसे देवउठनी एकादशी अथवा देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं।

देवोत्थान एकादशी स्मरण कराती है कि हम अपने अंदर बोध जागृत करें कि अब समय आ गया है जब हमें अपने भीतर की दिव्यता को जगाना है।

यह तिथि बताती है कि त्रैलोक्य के पालनहार भगवान श्रीविष्णु के योगनिद्रा से जागने के साथ ही सम्पूर्ण देवसत्ता चैतन्य हो जाती है।

चैतन्य हो जाने का तात्पर्य है कि हम में पूर्वकाल से ही जो अपरिमित ऊर्जा, अतुल्य सामर्थ्य, ओज, तेज आदि विभूतियां विद्यमान हैं, उन्हें विवेक, शुभ विचार तथा सद्संकल्प द्वारा जाग्रत किया जा सकता है।

विचारों में अद्वितीय सामर्थ्य विद्यमान होता है। जीवन रूपांतरण के लिए विचारों में शुद्धता बहुत जरूरी होती है। सकारात्मक, स्वास्थ और पवित्र विचार जीवन को दिशा और दृष्टि प्रदान करते हैं। शुभ विचार जीवन में सहजता, अभयता, सरसता और आनंद उत्पन्न करते हैं।

संसार की प्रायः सभी शक्तियां जड़ होती हैं। उदाहरण के लिए, धन अथवा जनशक्ति ले लीजिए। अपार धन उपस्थित हो, किंतु समुचित प्रयोग करने वाला कोई विचारवान व्यक्ति न हो तो उस धनराशि से कोई भी काम नहीं किया जा सकता है।

एक कथा के अनुसार, श्री विष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को शंखासुर को युद्ध में मारा था तथा अपनी थकान मिटाने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे।

चातुर्मास में प्रकृति में परिवर्तन होता है और अनेक जीवाणुओं, विषाणुओं की उत्पत्ति होती है। ऐसे में बाहर जाने पर संक्रमण होने का खतरा होता है। इसलिए चातुर्मास में घर पर ही रहकर अध्ययन-मनन और जनसेवा का विधान किया गया। देवोत्थान एकादशी को व्रत रखने का विधान भी रोगाणुओं से शरीर को मुक्त करने का उपक्रम ही है।

ईश्वर को हमसे कुछ नहीं चाहिए। वह तो यही चाहता है कि मनुष्य अपना जीवन सुख, शांति तथा आनंद से व्यतीत करे। इसीलिए समय-समय पर हमें जागृत करता रहता है कि खुद के पास की क्षमता को पहचानो और अपना उत्थान करो। इसी क्रम में यह देवोत्थान एकादशी भी एक प्रेरक भूमिका निभाती है।


उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्।।


भावार्थ:
हे गोविंद! आप जग जाइए। आप निद्रा का त्याग कर उठ जाइए। हे जगन्नाथ! आपके सोते रहने से यह सम्पूर्ण जगत सोता रहेगा। आपके उठने पर सभी लोग कार्यों में प्रवृत्त हो जाएंगे। हे माधव! उठ जाइए।

देवोत्थान एकादशी का संदेश है कि अकर्मण्यता की रात बीत चुकी है, अब कर्म के सूर्य का उदय होना है। इसलिए अपने कर्तव्यों के लिए जाग जाओ। जिन लोगों ने अपना काम कल पर छोड़ दिया था, उन्हें अब पूरा करने के लिए लग जाना चाहिए।

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