धर्म का आधार विश्वास होता है, तर्क नहीं!



हिन्दू धर्म सनातन धर्म है। यह शाश्वत है। यह अनादि काल से चला आ रहा है। यह जीवन-पद्धति है। यह आचरण का अंग है। यह सत्य है, सुंदर है, और कल्याणकारी है।

ऋग्वेद में ऋषि बताता है कि यह पथ सनातन है। समस्त देवता और मनुष्य इसी मार्ग से पैदा हुए हैं तथा प्रगति की है। हे मनुष्यों, आप अपने उत्पन्न होने की आधाररूपा अपनी माता को विनष्ट न करें।

सनातन का अर्थ है जो सदा के लिए सत्य हो। उदाहरण के लिए सत्य सनातन है। ईश्वर सत्य है। आत्मा सत्य है। मोक्ष सत्य है।

सनातन धर्म में धर्म पर चर्चा, विचार, अपना मत रखने की छूट है। इसलिए कुछ इसे सनातन, कुछ इसे वैदिक, तो कुछ इसे हिंदू धर्म कहते हैं।

सनातन धर्म वह है जो ईश्वर, आत्मा यानि खुद को जानने और मोक्ष यानि भौतिक वस्तुओं से लगाव न रखने की बात बताता है। यह बार-बार समझाता है और उदाहरण देकर दिखाता है कि यह पुस्तक में अवस्थित धर्म नहीं है। यह मन, आत्मा और आचरण में बसा हुआ है।

यह धर्म सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, तप की बात करता है। जिस तरह सत्य, अहिंसा, दया, दान, तप आदि जीवन की आवश्यकताएं हैं, ठीक उसी तरह से यह धर्म भी मानव के विकास में जरूरी है।

बृहदारण्यक उपनिषद सिखाता है:

असतो मा सदगमय,
तमसो मा ज्योर्तिगमय,
मृत्योर्मा अमृतं गमय।

अर्थात हे ईश्वर! मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो! अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो! मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो अर्थात अमरत्व की ओर ले चलो!

यह धर्म ज्ञान अर्जन की बात करता है। ईश उपनिषद में ऋषि कहता है:

ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।

इसका अर्थ है कि यह संसार जो ईश्वर से उत्पन्न हुआ है, वह ईश्वर खुद संसार बनाने के बाद भी पूर्ण है। यह संसार भी पूर्ण है। यह कुछ इस प्रकार का है कि पूर्ण से पूर्ण निकाल लिया जाए तब भी अवशेष पूर्ण ही रहता है। यही ज्ञान सनातन धर्म है।

सनातन धर्म प्रकृति संरक्षक है। वह आकाश, वायु, जल, अग्नि और पृथ्वी की भांति ही शाश्वत है। यह उसी समय से है जब से आकाश, वायु, जल, अग्नि और भूमि हैं। यही सनातन धर्म का सत्य है।

यह धारणा गलत है कि हिन्दू शब्द सिंधु का अपभ्रंश है अर्थात सिंधु से निकला है। यह जान बूझ कर फैलाया हुआ झूठ है। अगर ऐसा होता तो सिंधु नदी को भी हिन्दू नदी कहा जाता। हिंदुकुश पर्वत आज भी है।

यह सब हिंदुओं की असावधानी और अपने इतिहास के छेड़छाड़ के प्रति अ-सचेत रहने के कारण हुआ है। वर्षों की गुलामी और आपसी एकता की कमी के कारण यह हुआ है।

यह इस मूर्खतापूर्ण विश्वास के कारण भी हुआ है कि अगर कोई विदेशी हिंदुओं को उनकी एक अच्छाई के साथ दस बुराइयां बता दे तो वे अच्छाई और बुराई को अलग-अलग सच-झूठ की श्रेणी में नहीं रखते हैं, बल्कि सबको सच मान बैठते हैं।

आर्य कहीं से आए नहीं। वह यहीं थे। झूठ फैलाने वालों ने आर्यों को यह सोचकर बाहरी बताया कि अगर वे न आए होते तो हिन्दू मदारी ही बने रहते और अच्छा इंसान न बनते।

हिंदुओं को विभाजित रखना उनके ऊपर शासन करने का सबसे उत्तम तरीका रहा है। आज भी अनेक हिन्दू अपने धर्मग्रंथों को हिन्दी अथवा संस्कृत में न पढ़कर अंग्रेज़ी में पढ़ना गौरव समझते हैं।

उन्हें मालूम होना चाहिए कि एक चालाक अनुवादक बहुत बारीक तरीके से हिन्दू धर्मग्रंथों में अपने भाव गलत तरीके से लिख देगा, आज हिंदुओं को उनकी असावधानी के कारण सच लगेगा और कालांतर में वह उस ग्रन्थ का सच्चा हिस्सा लगने लगेगा। कोई भी ग्रंथ मूल रूप में, मूल भाषा में ही पढ़ना चाहिए।

प्राचीन भारत को आर्यावर्त कहा जाता था। इसका भावार्थ है कि यह भूमि श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि थी । आर्य का एक अर्थ श्रेष्ठ होता है। इसका अर्थ यह निकलता है कि यह देश आर्यों का ही रहा है।

सनातन धर्म के सत्य को बताने वाले अनेक ऋषि हुए हैं। उनका कालखंड अलग-अलग रहा है। उन ऋषियों को दृष्टा कहा जाता है, अर्थात जिन्होंने सत्य को जैसा देखा, वैसा बताया। एक विशेषता इन ऋषियों की रही है कि सभी ऋषियों की बातों में एकरूपता बनी रही है। सिद्धांत अलग-अलग हुए, पर सबमें सत्य एक ही बना रहा।

आजकल हिन्दू अपनी परंपराओं को भूलकर अंग्रेजी की नकल में हैं। कोई मर जाता है तो लिखते हैं: RIP, इसका अर्थ होता है कि आत्मा आराम करे (Rest in peace)। यह ठीक नहीं है। सही तरीका लिखने अथवा कहने का है: ओम शांति अथवा मोक्ष प्राप्ति हो!

सभी हिंदुओं को जानना चाहिए कि आत्मा कभी एक स्थान पर आराम या विश्राम नहीं करती है। वास्तविकता यह है कि हिन्दू धर्म में आत्मा का पुनर्जन्म होता है अथवा उसे मोक्ष मिलता है।

हिन्दुओं को अपने रामायण एवं महाभारत जैसे ग्रंथों को कभी भी mythological नहीं कहना चाहिए। इस अंग्रेजी शब्द का अर्थ होता है: मिथ्या, झूठा, अथवा काल्पनिक।

अगर अपने महान आदर्शों राम, कृष्ण को ईश्वर नहीं कह सकते हैं तो इतिहास पुरुष तो कह ही सकते हैं।

जरा कल्पना करिए, जिस कृष्ण का जन्मदिन आजकल भादों मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को इतने जोर-शोर से पूरे विश्व में मनाया जाता है, हजारों वर्ष पहले वह अपने समय में कितना महान व्यक्तित्व रहा होगा जिसकी महत्ता आज भी कायम है और जिसे समय कम नहीं कर सका है!

यही है प्रमाण, सनातन हिन्दू संस्कृति की गौरवशाली विरासत का।

हिन्दू धर्म में मंदिर प्रार्थना स्थल नहीं होते हैं। वे देवालय होते हैं। वहां ईश्वर निवास करते हैं। हम वहां उनका दर्शन करने जाते हैं।

किसी भी कार्यक्रम में दीप प्रज्ज्वलित करने का उद्देश्य होता है कि हम अपने चारों ओर के अंधकार को दूर करें अर्थात प्रकाश फैलाएं। सभी को यह अंधकार मिटाने की प्रार्थना याद रखनी चाहिए।

हर सनातनी को अपने ऋषि-मुनियों पर गर्व होना चाहिए, यह सोचकर कि वे वैज्ञानिक थे। हम विश्वास से कह सकते हैं कि सनातन धर्म का मूल विज्ञान में ही है।

सनातन धर्म अज्ञान से ज्ञान की ओर जाने का रास्ता खोजता है। अज्ञान से ज्ञान की ओर जाना उसका परम लक्ष्य होता है। सनातन कर्म के सिद्धांत को मानता है जो कारण और प्रभाव के नियम पर आधारित है।

सनातन हिन्दू प्राणी और अचेतन सभी के सुख और कल्याण की कामना करता है। सनातन पुनर्जन्म को मानता है जो विकासवाद के सिद्धांत पर आधारित है।

धर्म का आधार विश्वास होता है, तर्क नहीं। ऋषियों मनीषियों ने सिखाया है कि धर्म संबंधी बातों में तर्क नहीं करना चाहिए। धर्म मानव-जीवन की एक आचार-संहिता है। धर्म कुछ वैसा ही है, जैसा आकाश। धर्म बना ही है कर्तव्य-पालन की शिक्षा देने के लिए।

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