बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न
कल 2.10.25 को दशहरा बड़ी धूमधाम से मनाया गया। हम भी पास की एक सोसायटी के समारोह में सम्मिलित हुये। वहां सदा की तरह रावण के पुतले को जलाया गया।
इस समारोह में हमें एक आश्चर्यजनक बात दिखाई दी। यहां रावण-जलाने की व्यवस्था में लगे लोग मिठाई बांट रहे थे। बांटने वाले बड़े नामधारी लोग थे।
भीड़ में बंटती मिठाई जब हमारे पास आई तो उत्सुकता बस हमने बांटने वाले सज्जन से पूछा, किस खुशी में मिठाई, भाई?
वह निरुत्तर हो गए।
इसका उत्तर हमने गूगल जी से पूछा तो पता चला कि राम जी को जलेबी बहुत पसंद थी। इसलिए रावण-दहन के बाद जलेबी खाना चाहिए।
वाह रे, वॉट्सएप यूनिवर्सिटी!
ज्ञान देने वाला हो तो ऐसा! और मानने वाले हों तो हमलोगों जैसे!!
यक्ष प्रश्नः
हर साल हमारे जलाने के बाद रावण फिर से कैसे आ जाता है?
या तो
हम अपने अंदर के रावणत्व को मरने नहीं देते या फिर रावण हमारे लिए एक परिहास का विषय है!
कहा जाता है कि अच्छे लोगों को हर बुरे में भी अच्छाई ढूंढनी चाहिए, फिर रावण तो उद्भट विद्वान था। हम रावण की कोई अच्छाई क्यों नहीं आजतक जान पाए? हम क्यों नहीं जान पाये कि भले कुल का नाश हो जाये पर देश सुरक्षित रहना चाहिये?
अपने देश की रक्षा करते हुये, उस पर मर मिटना और अपना सर्वस्व त्याग करने के लिये तैयार रहना सबसे बड़ा धर्म होता है।
हजारों साल से हम रावण जला रहे हैं और फिर अगले साल रावण आ जाता है, क्यों?
अब आते हैं मूल प्रश्न, मिठाई बांटने पर।
तुलसीदासजी की ’रामचरित मानस’ में और महर्षि वाल्मीकि की ’रामायण’ में राम द्वारा रावण के मारे जाने के बाद मिठाई बांटने का उल्लेख नहीं मिलता है।
हां, इस बात का उल्लेख अवश्य है कि राम चिंतित हो जाते हैं कि रावण एक ब्राह्मण था, विद्वान था, परम शिवभक्त था, कहीं उसकी हत्या का पाप तो उन्हें नहीं लगेगा और फिर उससे मुक्ति कैसे मिलेगी?
राम, भगवान बाद में हैं; पहले वह एक आदर्श राजा हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, और वह अपने किसी कार्य से अप्रशंसनीय नहीं बनना चाहते हैं।
अब गूगल जी का ज़लेबी ज्ञान।
हमने गत वर्ष के ’अनुभव’ में एक लेख गोहाना (हरियाणा) की प्रसिद्ध जलेबी के बारे में छापा था, जिसमें इसके इतिहास और प्रसार के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी।
संक्षेप में जलेबी का प्रारंभिक उल्लेख फारसी व्यंजन के रूप में 10वीं शताब्दी में मिलता है और भारत में इसका आगमन 15वीं शताब्दी के आसपास होता है। फिर राम के रावण को मारने के बाद जलेबी या मिठाई खाने, बांटने की बात गूगल जी के पास कहां से आ गई?
चलिए, हम ज्ञान अवश्य बटोरें, जहां से भी मिले पर इतना ध्यान रहे कि वॉट्सएप से लिया गया अधकचरा ज्ञान कहीं भारतीय संस्कृति को नुकसान न पहुंचाए।
पूरा विश्व यह जानता है कि हमलोग दूसरों की नकल करने में सबसे आगे रहते हैं। हमें विदेशी संस्कृति अपनी भारतीय संस्कृति से अधिम भाती है।
महान वह होता है जो आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है और वह भी अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षा करते हुए।
राम ने सदैव आदर्श व्यवहार की शिक्षा दी है। राम के आचरण में कहीं अमर्यादा नहीं मिलती है फिर राम को मानने वाले अमर्यादित आचरण क्यों करे?
जय श्री राम!